Panditji

श्रीपाद श्रीदामोदर सातवळेकर

जन्म: १९ सप्टेंबर १८६७
स्वर्गवास: ३१ जुलै १९६८
जन्म स्थान: सावंतवाडी
कार्यस्थान: कोलगांव, औंध, हैदराबाद, पीठापुरम, कांगड़ी, लाहौर और पारडी.
कार्यभूमिका: संस्कृताभ्यासक, लेखक, चित्रकार, छायाचित्रकार

स्वाध्याय मंडल, किल्ला पारडी

अनेक महान कर्मयोगीओंने भारत भूमिमें जन्म लिया हे। वैसे ही एक महान कर्मयोगी श्रीपाद सातवलेकर जिन्होंने आजीवन वेदनारायणकी सेवा करते हुए पुरे विश्वमें वैदिक ध्वज लहरानेका, मानव जीवनको सच्चा मार्ग दिखानेका, विश्व शान्तिका जयघोष करनेका, व्यक्तिसे लेकर राष्ट्र तक सभीको सबल बनानेका प्रचंड कर्मयोग किया है।

वैदिक वाङ्गमयको अंतिम मनुष्य तक ले जानेके लिए उन्होंने वेदोको विषयवार विभाजित करके, वेदोमेंसे सबको सरल लगे एसे विषयों और अर्थोंको विभाजित करके सही अर्थमें वैचारिक क्रांतिका सर्जन किया है ।

वेदोमें वर्णित राष्ट्र, स्वराज्य, राज्यशासन, अर्थव्यवस्था, कृषि, गौपालन, शिक्षक, स्त्री कर्तव्य-कार्य, प्रकृति, राष्ट्रकी व्यवस्थायें, दंडके विधान, युद्ध कला, अस्त्र शस्त्र, कायदे-सुरक्षाकी स्थिति, उपासना प्रणालियाँ, देवताओंके स्वरूप, देवताओंके कार्य, स्तोत्र-मंत्र-वेदोमें रही समष्टिकी उपासनाए, ब्रह्मांड रहस्य, गर्भविज्ञान, इतिहास, वैदिक विज्ञान, यंत्र, आयुर्वेद, योग, बलके नियम, अबाल-वृद्ध सबके कर्तव्य, दीर्घजीवन, गृहस्थाश्रम, संगठन शक्ति, ब्रह्मविद्या, इन्द्र और इन्द्रियशक्ति, वेदोक्त ऋषिदर्शन, एकादशी-व्रतों, ओमकार, संस्कृत, वेदाध्ययन, ब्रह्मचर्य, स्वराज्यमें गणेश, मृत्युको दूर करनेके रहस्य, सर्प-रोग-जंतु आदि विविध विद्याएं एसे अनेक विषय, बाते, मुद्दों पर वेद, उपनिषद्, वैदिक सूक्त, गीता, रामायण, महाभारत, ऋषि दर्शनों इत्यादिके आधार पर विस्तृत और सरल लेखन किया गया है। जिसमें व्यक्तिसे लेकर विश्व तककी तमाम पहेलियोंका उपाय और मार्गदर्शन है। व्यक्ति अपने आप ही संस्कृत भाषा और वेदोंका अध्ययन कर सके इस हेतु ‘संस्कृत स्वयं शिक्षक’ और ‘वेद स्वयं शिक्षक’ जेसी रचनाएं करके महान विचार क्रान्ति की है।

आप सभी पाठक और सभी मनुष्य ईश्वरकृत अपौरुषेय एसे वेद और वैदिक वाङ्गमयका परिचयात्मक ओर गहन अभ्यास करें, कराएं इसलिए अपने आसपास ‘स्वाध्याय मंडल’ निर्माण करके वेदोंका स्वाध्याय करें और हम सब साथ मिलकर निम्नलिखित वैदिक घोषणाको सार्थक करें।

सर्वेत्र सुखिन: सन्तु सर्वे सन्तु निरामया:।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखमाप्नुयात्॥

समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः।

समानमस्तु वो मनः यथा वः सुसहासति॥

ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥

श्रीपाद सातसातवळेकरजीने स्थापित की हुई ‘स्वाध्याय मंडल, किल्ला पारडी’ इस संस्थामें वैदिक संस्कृतिसे संबंधित अनेक कार्य हो रहे हैं। वैदिक संस्कृतिके पुनरुत्थान और विस्तार हेतु विश्वका कोई भी व्यक्ति सहभागी हो सकता है।

वेदनारायण भगवानकी जय