Weight | 122 g |
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Author : | Pandit V.P. Hardikar |
Pages : | 78 |
Edition : | First |
Publishing Year : | 2025 |
Language : | Hindi |
Binding : | Soft Binding |
Publisher : | Swadhyay Mandal |
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અખંડ હિંદુસ્તાન-Akhand Hindustan
પરિચયહિંદુસ્થાન અખંડ જ હોય! અખંડ હોય એ જ આપણું હિંદુસ્થાન છે. આઝાદ ભારતમાં અખંડ હિંદુસ્થાનની પ્રાપ્તિ જ આપણું પરમ લક્ષ્ય છે અને હિંદુસ્થાન માટે જીવનની આહુતિ આપનારી મહાન હુતાત્માઓને સાચા અર્થની શ્રદ્ધાંજલિ છે, કૃતજ્ઞતા છે.આ માટીના કણકણથી નિર્મિત સહુનું કર્તવ્ય છે કે હિંદુસ્થાન અખંડ બને. અખંડ હિંદુસ્થાન જ આપણું મૂળભૂત અને પૂર્ણ સ્વરૂપ છે. અખંડ હિંદુસ્થાન જ શિવ છે, શક્તિ છે, નારાયણ છે, સૂર્ય છે, ગણેશ છે, આપણો આત્મા છે, સનાતન છે, વૈભવ છે, શોભા છે, આપણું પૂર્ણ સ્વરૂપ અને આપણું સર્વસ્વ છે.અખંડ હિંદુસ્થાન પુસ્તક દ્વારા આર્યાવર્ત, ભારત, હિંદુસ્થાનની ભૌગોલિક અને ભાવનિક એમ પૂર્ણ સ્વરૂપની સ્પષ્ટ સમજણ આપી છે. દેવતાઓ વડે નિર્માણ થયેલી આ ભૂમિ અને તેના નગરો, ઋષિઓના તપથી વધેલું સત્વ, ભગવદ સ્વરૂપ આ માતૃભૂમિ અખંડ હો. એ જ આપણી શિવ શક્તિ સ્વરૂપા છે. અમે તેના જ ભક્ત છીએ, તેને જ અમે માં કહીને હાંક મારી છે અને તે જ ખંડિત હો એ અમારા માટે અસહનીય છે. તેમજ તેનું અખંડત્વ અને આપણી એકતાનું અખંડ હોવામાં જ આપણી શોભા છે.અખંડ હિંદુસ્થાનનું સ્પષ્ટ ચિત્રણ અને સમજણ આપનારા આ પુસ્તકનું અધ્યયન કરનારા દરેક વ્યક્તિના મનમાં એકવાર તો અખંડ હિંદુસ્થાન પ્રાપ્તિના ધ્યેયનું જાગરણ અવશ્ય થશે જ. પંડિત શ્રીપાદ દામોદર સાતવળેકર નિર્મિત સ્વાધ્યાય મંડળ કિલ્લા પારડી દ્વારા આ પુસ્તકને પુનઃ પ્રકાશિત કરતી વખતે અમને ખુબ જ આનંદ અને ગર્વની લાગણી થાય છે. આપણને સહુને અખંડ હિંદુસ્થાન પ્રાપ્તિના લક્ષ્યનું વળગણ થાય તેવી ભાવનાથી લખાયેલું અને પ્રકાશિત થયેલું આ પુસ્તક દરેક વ્યક્તિ સુધી પહોચે તેવી પ્રાર્થના.નિવેદનસ્વાધ્યાય મંડળ, કિલ્લા પારડી -
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हिंदु संघटन-Hindu Sanghatan
परिचय‘हिन्दु संघटन’ यह पुस्तक हिन्दुओकी संघटन शक्तिमें नया प्राण फूंककर चेतना जगानेवाला पुस्तक है। ‘संघे शक्ति कलोयुगे’ के पदको चरितार्थ करनेवाला है। धन, साधन, संपत्ति, व्यक्ति, ज्ञान, विज्ञान, तत्वज्ञान, तकनिकी, विरासत, नीतियां, बल, बुद्धि, कुदरती संपदाए, व्यवस्थाए इत्यादिमेंसे हमारे पास पिछले हजारो वर्षोंसे किसीकी भी कमी न होनेपर भी हम कितनोंकी गुलामियां, असहनीय यातनायें भोगकर आज भी पूर्ण हिन्दवी स्वराज्य प्राप्त नहीं कर पाए! इसका कारण है हमारी एकताका अभाव! पिछले हज़ारो वर्षोंसे हमने सबकुछ प्राप्त किया, हमे सबकुछ पढाया गया पर हमें एक्यके पाठ नहीं पढ़ाये गये, जो भी दुर्दशा आजतक हमारी हुई है और हो रही है उन सबका एकमात्र कारण है हममें एकता का अभाव।हमारी एकताके अभावसे ही यज्ञ – संगतिकरण, मैत्रिकरण, देवपूजा, और दानके आदर्श पर खड़ी हमारी हिन्दु सनातन संस्कृति तथा मेधाजनन, संगठन और विजयकी नीति पर आधारित हमारा वैदिक स्वराज्य हमसे दूर हुआ है। ऐसे समयमें यह पुस्तक हमारी संघटनाका अभाव, उसके कारण, उसके त्वरित तथा दूरगामी परिणाम, संघटन शक्ति, संघटन शक्तिको कैसे मजबूत करे, संघटनके लिए हमारे कर्तव्य इन सभी बातोंको एसी उत्तम शैलीसे बताता है की वाचक मित्र बड़ी सरलतासे समज सके। यह पुस्तक हिन्दकी प्रजा पढ़ेंगी, जीवन व्यवहारमें लायेंगी तो हिन्दुस्थानकी संघटना होनेसे कोई रोक नहीं पायेगा।पंडित श्रीपाद दामोदर सातवळेकर द्वारा रचित स्वाध्याय मंडल किल्ला पारडीकी ओरसे इस पुस्तकको पुनः प्रकाशित करते हुए हमें अत्यंत खुशी और गर्वकी अनुभूति हो रही है। सभी हिन्दु, सनातनी और भारतीय भाई-बहनों तक एकताके इस तत्वको साहित्यके रूपमें पहुंचानेका भगीरथ कार्य प्रारम्भ किया है, उसी प्रकार यदि आप सभी लोग ‘अखण्ड हिन्दु संघटना’ के इस महान यज्ञमें भाग लेंगे तो यह भगवान वेदनारायण, असंख्य वीर योद्धाओं, संतों, मुनियों, महापुरुषों और सतियोंके प्रति कृतज्ञताकी अभिव्यक्ति मानी जाएगी।निवेदनस्वाध्याय मण्डल, किल्ला पारडी -
अखण्ड हिन्दुस्थान-Akhand Hindustan
निवेदन
स्वाध्याय मण्डल, किल्ला पारडी -
आर्योंका भगवा ध्वज-Aryo ka Bhagva Dhvaj
ध्वज यह किसी भी राष्ट्र, संस्था, समूह, विचार, योद्धाकी कीर्तिका और स्वभिमानका स्वरुप है। राष्ट्रकी कीर्ति, यश, धन, प्रतिष्ठा, सत्ता, सौंदर्य, बलकी विजय पताका हमेशा फहराती रहे यह प्रत्येक राष्ट्रकी, राष्ट्रके लोगोंकी हृदयंगम भावना और दृढ इच्छा होती है।
आर्य अर्थात् श्रेष्ठ और उनका सबकुछ श्रेष्ठ। आर्यावर्तकी इस भूमिमें अनेक राजा, चक्रवर्ती सम्राट आदि आए और उत्तम शासनसे प्रजाको सुखी करकें देवलोक प्राप्त किया। अनेक पाशवी और परदेशी सत्ताए इस देसमें शासन हेतु आई, तब इस देशकी अस्मिताका ध्वज हमेशा भगवा ही रहा है। हर तरहसे सामर्थ्यवान एसा यह आर्यावर्त बड़ी द्रढताके साथ मानता है की हमारे मूलमें वेदोंके विचार, ऋषि, वीर वीरांगनाए, संत और सतीयां है। यहाँ पद पद पर क्रान्ति और मानवताकी प्राप्तिके लिए बलिदान है इन सबके प्रतिक स्वरूप हमने भगवे ध्वजको आजकलसे ही नहीं अपितु आदिकालसे ही स्वीकारा है। वही हमारी शान है, मान है, स्वाभिमान है। इस ध्वजके तले ही अनेक लोगोंके बलिदान और हमारी भव्य विरासतकी रचना हुई है, जो हमारे जीवनमें और विकसित होनेमें मार्गदर्शक है। यह भगवा ध्वज ही हमारा प्राण है, हमारी चेतना है, हमारी कीर्ति है।
एसी अस्मिता जगानेवाली यह पुस्तक है की जिसका अध्ययन करनेसे आर्य व्यक्तिओमें भगवे ध्वज और उसके प्रति सभानता एवं गौरव बढेगा। इस भावसे स्वाध्याय मंडल किल्ला पारडी द्वारा इस पुस्तकका प्रकाशन हुआ है जिसका हमें गौरव है।
लेकिन भगवा ध्वज ही क्यों? क्या भगवा ध्वज पहलेसे है या कालक्रमसे धर्मआग्रहीयोंके आग्रहसे ध्वज भगवा हुआ है? क्या आज भी हमारा ध्वज भगवा है या सिर्फ हम हिन्दुओंका ध्वज भगवा है? क्या देवताओंका ध्वज भी भगवा है? भगवे ध्वजका वर्णन वेदोंमें है? भगवे ध्वजके लिए हमारी द्रढ़ता और समज बढ़ानेवाला, गौरव बढाये एसे हरएक प्रश्नोंके उतर पाठक इस ‘आर्योंका भगवा ध्वज’ पुस्तक द्वारा प्राप्त कर सकेंगे एसी हमारी दृढ धारणा है।निवेदन
स्वाध्याय मण्डल, किल्ला पारडी
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